Saturday,Jan
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इमली के गोले..!!



शफक की चादर ओड़े हुए वह पार्क और वहां पानी की बौछारों में खेलते बच्चे| कितना मुश्किल था खुद को रोक पाना पर अब बड़ा होगया हूँ न| ऐसे जाकर उन बौछारों में खेलूँगा तो लोग क्या सोचेंगे| रात के आने का वक़्त था और ऊपर से जाते ऐरोप्लेंस की बतियाँ भी जल चुकी थी..

भागूं ऐरोप्लेंस के पीछे?
जैसे बचपन में भागता था?
पर अब बड़ा होगया हूँ अजीब लगेगा..!!

अन्दर से एक आवाज़ आई. "की जा न ...लोगों की परवाह क्यूँ करता है? यह पल तेरा है, इसपर तेरा अधिकार है, तुम्हे किसीको जवाब नहीं देना, जा खेल ले जो होगा देखेंगे..!!"

पर!! अजीब लगेगा..लोग क्या सोचेंगे, कपडे खराब होजाएंगे, मोबाइल फ़ोन और पर्स सब बेकार. कितनी जंजीरें हैं पैरों में..!!

शाम भी मुस्कुरा रही थी और जाने को थी, हाथ हिलाते हुए बोली कल फिर आउंगी, कल कोई बहाना नहीं चलेगा, जी भरकर खेलेंगे..वो गयी तो खुद पर हँसा पडा| कैसे कैसे दोस्त बना लेता हूँ मैं भी!!

आज फिर शाम आई थी मेरे घर मुझे बुलाने केलिए, मैंने किसी से कहलवा दिया, की मैं घर पर नहीं हूँ..!! वो गयी तो मेरा बचपन मुझसे मिलने आगया,  कुछ देर बैठा, और इससे पहले वह कुछ बोलता मेरे मुह से निकल गया "आज बहुत काम है!". उसने कुछ जेब से निकाला था, वह फिर से रख लिया, हसकर बोला "जाता हूँ शाम इंतज़ार कर रही है. कह रही थी की तुमने किसी से झूठ बुलवा दिया की तुम घर पर नहीं हो. उसे लगा की अगर मैं जाकर तुम्हे बुलाऊंगा तो तुम आजाओगे." यह कह कर वह चला गया और मैंने भी नहीं रोका उसे. मुझे पता था की उसने अपनी जेब से क्या निकाला था, वह पांच रुपे की पॉकेट मनी जो उसे हर हफ्ते मिलती है. शायद कहना चाह रहा था की "चल! चल के इमली के गोले खाते हैं|"

पागल है. पता भी है उसे, की इमली के गोले कितने खराब होते हैं? अरे पेट खराब होसकता है, इन्फेक्शन लग सकता है, अल्सर हो सकता है!!

मैं यह सब क्या सोच रहा हूँ?? यह सब मुझे किसने सिखा दिया? मैं इतना डरने क्यूँ लगा हूँ? खिड़की के पास जाकर देखा तो बचपन और शाम एक परचूने की दूकान के सामने खड़े इमली खा रहे थे. झगड़ भी रहे थे की किसके पास ज्यादा है. मुझे भी इमली खानी थी पर उससे भी ज्यादा मन तो झगड़ने का था की दुसरे की इमली भी मुझे मिल जाए, आखिर पांच रुपे मेरे हैं!!  आज चला जाता हूँ मन की कर लेता हूँ , कभी कभी तो मन की कर सकते है ना? बस मन में ठान लिया की आज कुछ नहीं सोचूंगा, इमली खाऊँगा पानी की बोछारों में खेलूँगा जी भरकर. तभी किसी आवाज़ ने पीठ थप-थपाई..पीछे मुड कर देखा तो किसी का फ़ोन आरहा था. हसता हुआ फ़ोन उठाने चल पड़ा. मन खुश था की एक दिन तो मन की करूँगा आखिर मुझे किसी को जवाब नहीं देना!

माँ का फ़ोन था! कह रहीं थी "बेटा! इमली वाला घर के बाहर आया है,  खाने का बहुत मन है, तू इजाज़त दे तो थोडी सी लेलूं?"

बिना कुछ सोचे मुह से निकल पडा ..."नहीं माँ! डॉक्टर ने मना किया है ना? पेट खराब हो जायेगा, इन्फेक्शन लग जायेगा, अल्सर हो जायेगा.........."
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