रिश्ते..!!


मैं परेशान था..हैरान था!! मुझे मेरे कदमों की आहट सुनाई नही देती थी? क्यूंकी मेरे पैर नही है..!! मुझे हक़ीक़त बाबा ने बताया की यही कोई 2-3 साल पहले, ज़िंदगी से गिरकर मैने अपने पैर गवाँ दिए थे|

हाँ..याद है मुझे भी..!!

काफ़ी दिन बेहोश रहा, और जब होश आया तो अश्कों के अस्पताल में पड़ा हुआ था. सरकारी अस्पताल था तो इलाज भी बेकार ही रहा| दर्द का इंफेक्शन लग चुका था| जब देखो नर्स आकर एक नींद का इनजेकशन लगा जाया करती और मैं फिर कुछ पल सुकून के काट लिया करता|

उसके बाद माज़ी* चाचा मुझे अपने साथ लेआए और अब मैं उनके साथ ही रहता हूँ|

मैं देखता था की माज़ी चाचा के कोई दोस्त हैं...मुस्तक़बिल*! अक्सर उनसे मिलने आया करते हैं| मुस्तक़बिल देखने मे जितने सुंदर हैं माज़ी चाचा उतने ही बदसूरत पर दोनो हैं काफ़ी गहरे दोस्त|

एक रोज़...

उन दोनो की किसी बात पर झड़प हो गयी और मुस्तक़बिल गुस्से में चले गये| मैं अपनी हिम्मत की व्हीलचेयर चलाता हुआ माज़ी चाचा के पास आया और उनसे पूछ ही डाला| सुनकर हैरानी हुई की मुस्तक़बिल, मुझे अपने साथ लेजाना चाहते हैं..!! हक़ीक़त बाबा की भी मंज़ूरी ले ली है उन्होने और आज नही तो कल मुझे उनके पास जाना ही होगा. माज़ी चाचा की आँखें हमेशा की तरह भरी हुई हैं. वो मुझसे बेहद प्यार करते हैं..!!

सुनने मे आया है की मुस्तक़बिल का आलीशान महल है और महल की दीवारों पर कई कोसों* के रंग चड़े हैं. काफ़ी नौकर-चाकर और गाड़ियाँ भी है!! माज़ी चाचा ने बताया की उनकी एक बेटी भी है जिसका नाम है उम्मीद.!! मुस्तक़बिल मेरी शादी उससे करना चाहते हैं. लाचार हूँ तो वो चाहते हैं की अब उनके घर में ही रहूं.

माज़ी चाचा बहुत दुखी हैं...और मैं भी..!!

उम्मीद बहुत खूबसूरत है. मेरा पूरा ख़याल रखती है. आज उससे शादी हुए पुर 7 महीने बीत चुके हैं. मुस्तक़बिल भी आज कल काफ़ी व्यस्त रहते हैं|

कल माज़ी चाचा भी मिलने आए. बहुत अश्चर्य हुआ यह देख, की उनकी शक्ल अब बदलने लगी है....वह सुंदर होते जा रहें हैं और खुश भी रहने लगे हैं..!!

अच्छा लगा.

मैं आज खुश हूँ पर उम्मीद कभी कभी उदास हो जाती है. मैं समझता हूँ उसकी परेशानी! वो कभी माँ नही बन सकती..!! पर मैं उसे अब हर हाल में खुश देखना चाहता हूँ. आज हम दोनो ने मिलकर एक फ़ैसला किया है. हम एक सपने को गोद ले लेंगे और हक़ीक़त बाबा भी इस बात पर राज़ी हैं और कहते हैं...की वो सपना एक दिन बड़ा होकर बिल्कुल उनके जैसा बनेगा|

मैं आज सोचता हूँ कि क्या हुआ जो मैं चल नही सकता, मेरे साथ इतने सारे रिश्ते जुड़े हैं जो मेरा ध्यान रखते हैं|

मुझे पैरों की ज़रूरत ही क्या है!!
...........................
माज़ी -- Past
मुस्तक़बिल -- Future
कोसों -- Rainbows

2 comments:

हरकीरत ' हीर' said...

बहुत खूब ......!!

कुछ अलग हट कर लिखने की ये शुरुआत ब्लॉग जगत में अच्छी लगी .....!!

HBMedia said...

nice...bahut achha hai(gaurtalab)

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